दमोह/बटियागढ़- क्या दमोह पुलिस अब सिर्फ कुर्सी गर्म करने और कागजी खानापूर्ति तक सीमित रह गई है? जिले के मगरोन गांव में आयोजित कलेही माता मेले में जो कुछ हुआ, उसने पुलिस व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी।
मंदिर समिति ने मेले की जानकारी समय रहते प्रशासन को दी थी, फिर भी सुरक्षा के नाम पर एक अदद सिपाही तक नजर नहीं आया। नतीजा? भारी भीड़, शून्य सुरक्षा और अराजकता का नंगा नाच। चोर गिरोहों ने पुलिस की गैर-मौजूदगी का फायदा उठाते हुए दर्जनों महिलाओं के गले से मंगलसूत्र झपट लिए। महिलाओं की चीख-पुकार के बीच पुलिस नदारद रही।
स्थानीय लोगों ने जब पुलिस अधीक्षक से गुहार लगाई तो आदेश जरूर दिए गए, लेकिन ज़मीनी हकीकत यही रही कि दो दिन बाद भी पुलिस मेले तक नहीं पहुंची। प्रशासन की यह सुस्ती ही रविवार को हुई हिंसा की वजह बनी, जब शराबियों के झगड़े में कई लोग घायल हो गए।
अब जनता पूछ रही है – क्या पुलिस सिर्फ वीआईपी ड्यूटी और फोटो खिंचवाने के लिए रह गई है? जब हजारों की भीड़ इकट्ठा हो रही थी, तब पुलिस क्यों सो रही थी? क्या किसी बड़ी दुर्घटना के बाद ही पुलिस हरकत में आएगी?
स्थानीय नागरिकों ने रोष जताते हुए कहा है कि यदि यही हाल रहा तो भविष्य में मेले का आयोजन ही बंद कर दिया जाएगा। यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि स्थानीय संस्कृति और आस्था का प्रतीक था, जिसे प्रशासन की लापरवाही ने शर्मसार कर दिया।
अब वक्त है कि दमोह पुलिस को जवाबदेह बनाया जाए। सिर्फ बैठकों और आदेशों से सुरक्षा नहीं मिलती – जिम्मेदारी निभानी पड़ती है, जो कि यहां साफ तौर पर नदारद रही।
