दमोह – दमोह जिले की हटा विधानसभा इन दिनों चर्चाओं का केंद्र बनी हुई है। यहां कानून व्यवस्था की हालत इस कदर चरमरा गई है कि अब आमजन अपने घरों से बाहर निकलने में भी डरने लगे हैं। सत्ता के संरक्षण में फल-फूल रही अराजकता और पुलिस-नेता गठजोड़ अब आम जनता के लिए एक खुला खतरा बनते जा रहे हैं।
ताजा मामला जिले के रनेह थाना क्षेत्र का है, जहां चार दिन पहले एक यात्री बस में हुए मारपीट के वीडियो ने जिलेभर में हलचल मचा दी। वायरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि एक महिला स्टाफ नर्स नीलिमा यादव एक महेन्द्र सिँह लोधी नाम के युवक को सरेआम पीट रही है। घटना के दौरान महिला द्वारा इस्तेमाल की जा रही गालियों और अभद्र भाषा से बस में मौजूद यात्री सहम गए। यह पूरा मामला आधे घंटे तक चलता रहा और बस में मौजूद लोगों ने इसे अपने मोबाइल कैमरों में कैद कर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया।
पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल,,
सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि मौके पर पहुंची रनेह पुलिस ने महिला से सवाल-जवाब करने की बजाय पीड़ित युवक को ही उठा लिया। पुलिस ने उसे रातभर थाने में रखा और कथित रूप से थर्ड डिग्री टॉर्चर दिया। अगले दिन युवक को 151 की धारा लगाकर तहसीलदार के सामने पेश किया गया।
जब युवक के परिजन तहसील कार्यालय पहुंचे और उसकी ज़मानत कराई, तब युवक ने न्याय की गुहार लगाते हुए दमोह एसपी कार्यालय में अपनी शिकायत दर्ज कराई। उसने पूरे घटनाक्रम को मीडिया के सामने रखते हुए न्याय की मांग की, लेकिन यहीं से कहानी ने नया मोड़ ले लिया।
पीड़ित बना आरोपी, पुलिस की उलटी कार्यवाही
शिकायत करने के चंद घंटों बाद ही पुलिस विभाग हरकत में आया, मगर न्याय के लिए नहीं, बल्कि नेता जी की छवि बचाने और पीड़ित की आवाज दबाने के लिए। पुलिस ने युवक महेंद्र लोधी पर गंभीर धाराओं में एफआईआर दर्ज कर दी, जिसमें धारा 353 (सरकारी कार्य में बाधा), 354 (छेड़छाड़) जैसे अपराध जोड़ दिए गए।
यह मामला तब और अधिक संदिग्ध बन गया जब हटा एसडीओपी प्रशांत सुमन ने खुद सोशल मीडिया पर वीडियो जारी कर सफाई दी कि महिला स्टाफ नर्स ने बाद में छेड़छाड़ की शिकायत दर्ज करवाई। सवाल ये उठता है कि अगर छेड़छाड़ अस्पताल परिसर में हुई थी, तो महिला को पीड़ित युवक को यात्री बस में पीटने की जरूरत क्यों पड़ी? और पुलिस उस समय कहां थी जब सार्वजनिक स्थान पर कानून हाथ में लिया जा रहा था?
भरोसे की नींव हिल रही है,,सोसल मीडिया पर उठने लगा पुलिस के अधिकारी के खिलाफ आक्रोश
दमोह में लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें फरियादी को ही आरोपी बना दिया जाता है। यह घटनाक्रम साबित करता है कि जिले में कानून का राज नहीं, बल्कि रसूखदारों और नेताओं के इशारे पर कानून की व्याख्या हो रही है। जनता का भरोसा पुलिस प्रशासन से उठता जा रहा है, और अपराधियों के हौंसले बुलंद होते जा रहे हैं।
पत्रकारिता की जिम्मेदारी, अब होंगी कहानी शुरू,,,
ऐसे माहौल में मीडिया की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। यह मामला केवल एक युवक की पीड़ा नहीं, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। जब शिकायतकर्ता को ही झूठे केस में फंसा दिया जाए, तो यह स्पष्ट संकेत है कि सिस्टम में सड़ांध फैल चुकी है। लोगो का कहना हे कि,दमोह जिले में कानून व्यवस्था रसातल में जा चुकी है। यदि समय रहते प्रशासन ने आत्ममंथन नहीं किया, तो यह बेलगाम गुंडाराज आने वाले समय में जिले के लिए बड़ी त्रासदी बन सकता है। जनता को चाहिए कि लोकतांत्रिक तरीके से अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाए और प्रशासन से जवाबदेही मांगे।
