नेताओं के इशारों पर चल रही दमोह पुलिस? एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी की कार्यशैली पर उठे सवाल?
दमोह – दमोह जिले में कानून व्यवस्था अब रसातल में पहुँच चुकी है, और इसके लिए जिले की सबसे बड़ी जिम्मेदार पुलिस कप्तान यानी एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी की कार्यशैली पर सीधे सवाल उठ रहे हैं। आरोप है कि एसपी साहब नेताओं के इशारों पर काम कर रहे हैं, और आम जनता, पत्रकार, सामाजिक वर्गों की समस्याएं उनके लिए प्राथमिकता नहीं, बल्कि “अनसुनी फाइल” बन चुकी हैं।
पीड़ित बने आरोपी, दोषी खुलेआम: कौन चला रहा है पुलिस प्रशासन?
दरअसल ताजा मामला रनेह उपस्वास्थ्य केंद्र का है, जहां पर बीते दिनों पन्ना जिले के ग्राम टपरियां निवासी महेंद्र लोधी अपनी गर्भवती पत्नी का इलाज कराने पहुंचे। इलाज से मना करने वाली नर्स नीलिमा यादव ने महेंद्र पर ना केवल जातिगत गालियां दीं बल्कि सार्वजनिक रूप से बस से खींचकर गन्दी गन्दी गालिया देते हुए जातिगत अपमानित किया तथा सरेआम जोरदार मारपीट भी की, जिसका वीडियो भी सोसल मीडिया पर वायरल हो गया ।
लेकिन दमोह एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी की पुलिस नर्स मैडम के कहने पर इस गंभीर मामले में पीड़ित को ही थाने उठाकर ले गई, जहा रातभर हिरासत में रखा और सुवह 151 कि धारा लगाते हुए प्रतिबंधत्मक कार्यवाही कर तहसीलदार कि न्यायलय के समक्ष पेस कर दिया, और जब युवक ने एसपी कार्यलय जाकर न्याय मांगने का प्रयास किया तो, अगले ही दिन उल्टा पीड़िता युवक के खिलाफ छेड़छाड़, शासकीय कार्य में बाधा जैसी गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कर दिया, जो चर्चाओ का विषय बन गया।
🔴 आंदोलन के दबाव में पुलिस की ‘नींद’ टूटी,,,
वही जब ओबीसी महासभा ने 15 जून को रनेह थाना घेराव का ऐलान किया, तो पुलिस और प्रशासन हरकत में आया। 14 जून क़ो दोपहर पहले एक पीड़िता युवक महेन्द्र क़ो नोटिस भेजा, जिसमे लिखा गया कि आप पुलिस थाना रनेह आकर अपने कथन दर्ज कराये, ताकि कार्यवाही ज सके, मगर उसके तत्काल बाद ही बगैर पीड़ित के उपस्थित हुए आनन-फानन में नर्स पर मामला दर्ज किया गया और रात होते होते दो पुलिसकर्मियों को लाइन अटैच कर दिया गया।
यहां बड़ा सवाल उठता है –
👉क्या दमोह पुलिस आंदोलन और मीडिया दबाव के बिना न्याय नहीं देती?
👉क्या एसपी श्रुतकीर्ति सोमवंशी सिर्फ ‘राजनीतिक दबाव’ देखकर फैसले लेते हैं?
👉क्यों चुप हैं एसपी? क्या नेताओं की कठपुतली बन गया हे दमोह का पुलिस तंत्र,,,?
👉पिछले कुछ महीनों में:पत्रकारों के साथ मारपीट के मामले दबा दिए गए
👉धर्मांतरण, बलात्कार, नशे का कारोबार, अवैध खनन — किसी पर भी कार्रवाई प्रभावी नहीं हुई
👉सत्ता पक्ष के नेताओं से जुड़े मामलों में एसपी का रवैया मौन और रक्षात्मक रहा
👉पत्रकारों क़ो उलटी हिदायत दी गई कि, वे बिधायक या उनके परिजनों से जुड़े मामलो मे कबरेज न करें
और जिला मुख्यालय से लेकर ब्लॉक स्तर तक अफसरों का भरोसा टूटता जा रहा है। जिले की आम जनता का कहना है कि एसपी साहिबा किसी नेता का इशारा हो तो ही एक्शन लेती हैं, अन्यथा फरियादी थानों और एसपी कार्यालय के चक्कर लगाकर थक जाता है।
सवालों की बौछार में दमोह पुलिस कप्तान,,,
📌 क्यों नहीं लिया गया समय रहते पीड़ित की शिकायत पर संज्ञान?
📌 क्यों आंदोलन और जनदबाव के बाद ही होती है कार्रवाई?
📌 क्या एसपी सिर्फ ‘ऊपर’ देखने वाले अधिकारी हैं?
📌 क्या दमोह में जनता की कोई सुनवाई नहीं बची?
बहरहाल जो भी हो मगर इन दिनों बिगड़ती जिले कि कानून ब्यवस्थाओ से हालत चिंता जनक बने हुए हे, और जिसका परिणाम यह हे कि, अब जिलेबासी खुलकर सोसल मीडिया पर अब पुलिस कि भेदभाव पूर्ण कार्यवाही तथा जिले मे लगातार बढ़ रही अराजकता एवं गुंडागर्दी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हे, और बुजुर्गो के मुख से एक कहावत सुनी हे कि, जिस राजा के राज्य मे जनता त्रस्त होकर बगावत करने लगे, तो समझ लेना कि उस राज्य का बिलय या तख्ता पलट होना संभव हो जाता हे,,


























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