दमोह – प्रदेश और देशभर में जहां सरकार बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा और उनके भविष्य संवारने की योजनाओं पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है, वहीं दमोह जिले का पटेरा क्षेत्र इन दावों की पोल खोल रहा है। यहां एक महीने के भीतर दूसरी बार मासूम बच्चों की सरेआम पिटाई की घटनाओं ने प्रशासनिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
पहला मामला: पुलिस की सरेआम करतूत

बतादे कि 15 अगस्त को सामने आए पहले मामले में पटेरा थाना के सामने का सीसीटीवी फुटेज वायरल हुआ। इसमें प्रधान आरक्षक प्रमोद चौबे तीन नाबालिक युवकों को सड़क पर रोककर बेरहमी से पिटाई करते दिखाई दिए। जानकारी के अनुसार, जिस बाइक पर मारपीट हुई उस पर एक उत्कृष्ट विद्यालय का छात्र और गौ रक्षा सेवा समिति के दो सदस्य सवार थे। तीनों ही नाबालिक बताए जा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि यदि बच्चे गलत थे भी, तो कानून हाथ में लेकर उन्हें सरेआम सड़क पर पीटना कहां तक जायज है?
दूसरा मामला: शिक्षक ने की हाईवे पर मारपीट

दूसरी घटना भी पटेरा कस्बे से ही जुड़ी है। यहां संकुल में पदस्थ शिक्षक नवेंद्र अठया ने एक छात्र को बीच हाईवे पर दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। यह पूरा घटनाक्रम भी मौके पर लगे सीसीटीवी कैमरों में कैद हो गया। एक ओर शिक्षक जिन्हें बच्चों को संस्कार और शिक्षा देने का दायित्व सौंपा गया है, वही खुलेआम हिंसा पर उतर आए, तो यह बच्चों की मानसिक सुरक्षा पर गहरी चोट है।
बाल कल्याण समिति के जिला अध्यक्ष की प्रतिक्रिया-शिकायत मिलने पर होंगी कड़ी कार्यवाही
वही इस घटना को लेकर बाल कल्याण समिति दमोह के जिला अध्यक्ष दीपक तिवारी ने इन दोनों घटनाओं को अपराध करार दिया और कहा:“नाबालिकों की पिटाई न केवल मानवाधिकार बल्कि बाल अधिकारों का भी खुला उल्लंघन है। यदि पीड़ित परिजन शिकायत दर्ज कराते हैं तो संबंधित प्रधान आरक्षक और शिक्षक दोनों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।”
वायरल वीडियो पर क्यों नहीं हो रही कार्यवाही,प्रशासन पर उठते सवाल
- इन घटनाओं ने प्रशासन और पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए हैं—
- जब सीसीटीवी फुटेज स्पष्ट रूप से मौजूद हैं, तो कार्रवाई के लिए परिजनों की शिकायत का इंतजार क्यों?
- क्या पुलिस अपने ही कर्मचारियों को बचाने की कोशिश में चुप्पी साधे बैठी है?
बच्चों की सुरक्षा का दावा करने वाली व्यवस्था आखिर सड़कों पर मासूमों को पिटाई से क्यों नहीं बचा पा रही?*
बहरहाल जों भी हो मगर,पटेरा की ये घटनाएं केवल दो अलग-अलग प्रकरण नहीं, बल्कि एक खतरनाक प्रवृत्ति का संकेत हैं। यह प्रवृत्ति यह बताती है कि पुलिस बल हो या शिक्षा व्यवस्था—दोनों ही अपनी मूल जिम्मेदारी से भटककर हिंसक रवैया अपना रहे हैं। ऐसे में बच्चों का भरोसा किस पर टिकेगा?
यदि प्रशासन ने अब भी कठोर कदम नहीं उठाए, तो यह घटनाएं भविष्य में बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास पर गहरा असर डाल सकती हैं। पटेरा अब महज एक कस्बा नहीं रहा, बल्कि बच्चों पर हो रहे खुलेआम अत्याचार और मानवाधिकारों के हनन का प्रतीक बन चुका है।

























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