,,,,किसी ने क्या खूब लिखा है कि, मत चला ये ग़ालिब मेरे हालातो को देखकर अपनी कलम, तेरी कलम कि श्याही भलेही ख़त्म हो जाएगी, मगर मे तो अपनी आदतों से लाचार हूँ,,,,न कभी सुधरा हूँ,और नहीं कभी सुधर सकता हूँ ,,,,
दरअशल यह चंद लाइने आज दमोह के पंचायत बिभाग मे फैली भ्रस्टाचारी को लेकर कुछ इस कदर हालात बयां करती नजर आ रही है कि, मानो जिला प्रशासन के सम्बंधित बिभागों के बरिष्ठ अधिकारी और सम्बंधित बिभाग मे बैठे कथित सफ़ेद पोस जनप्रतिनिधि भी इस भ्रस्टाचार कि भट्टी मे अपने आप को पूरी तरह से सुपुर्देखाक कर चुके हो। जो कही न कही चिंता का विषय बना हुआ है। तो चलिए आज एक बार फिर चलाते है इन्ही हालातो को लेकर अपनी कलम, जिसे पढ़कर आपके भी होस उड़ जायेंगे।
दमोह – नरेगा,,,,, दरअशल नरेगा का नाम तो आप लोगो ने सुना ही होगा, जिसका मतलब है,,,,,महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005, जिसे लोग अब मनरेगा के नाम से जानते है। जिसे पहले राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम या नरेगा के नाम से जाना जाता था। जो एक भारतीय सामाजिक कल्याण उपाय है। जिसका उद्देश्य ‘काम करने के अधिकार’ की गारंटी देना है। मगर यह प्रशासन के द्वारा चलाई गई नरेगा की योजना दमोह जिले मे कुछ कथित सफ़ेद पोस भ्रस्ट अधिकारी और सम्बंधित पंचायत बिभाग मे बैठे कथित जनप्रतिनिधि कि तालमेल से दम तोड़ती नजर आ रही है। जिसका उदाहरण दमोह जिले कि तमाम जनपद पंचायतो मे देखने को मिल सकता है। बस महज एक बार जिले के जिम्मेदार और अपनी पीठ थपथपाने वाले सजग अधिकारी एसी चेंबर और अपनी लग्जरी गाड़ियों से उतरकर जमीन स्तर पर जाकर देखने की हिम्मत जुटा ले,तो शायद दूध का दूध और पानी का पानी हो जायेगा।
ताज़ा मामला दमोह जिले कि बटियागढ़ जनपद पंचायत अंतर्गत आने वाली ग्राम पंचायत पढ़ाझिर का सामने आया है। जहा पर करीब 9 लाख से ज्यादा कि राशि का तालाब स्वीकृत किया गया था, मगर वह तालाब जमीन पर कही बना ही नहीं,और उसके नाम से करीब 3 फर्जी मस्टर लगाकर 3 लाख से ज्यादा कि राशि सरपंच सचिव और रोजगार सहायक समेत अन्य बिभाग के अधिकारियो कि मदद से निकाल ली गई। जब मीडिया कि टीम को उक्त मामले कि जानकारी लगी, तो मीडिया ने सोचा कि शायद तालाब का निर्माण चल रहा होगा,तभी तो राशि आहरित कि गई है ,फिर क्यों न उस तालाब को देख लिया जाए। मगर जब मोके पर दमोह से मीडिया टीम पहुंची तो सुवह से लेकर साँझ ढल गई, मगर सम्बंधित पढ़ाझिर ग्राम पंचायत मे दूर दूर तक ऐसा अधूरा निर्माणाधीन तालाब नहीं दिखाई दिया, जिसका निर्माण चल रहा हो, या फिर तालाब का कार्य प्रगति पर हो। वही इस मामले मे जब ग्रामीणों से बात कि गई, तो बेचारे सरपंच और सचिव कि दबंगई के कारण चुप्पी साधकर बैठ गए। फिर क्या था आखिरकार मीडिया कि टीम मोके से पुनः मुख्यालय के लिए खाली हाथ लौट आई। अब सबाल यहाँ यह उठता है कि, आखिर इस तरह के खेल से क्या जिला प्रशासन के मुखिया जिला कलेक्टर सुधीर कुमार कोचर और सी ई ओ जिला पंचायत अर्पित बर्मा अनभिज्ञ है, या फिर इन मामलो को जानकारी के बाद भी सत्ताधारी पार्टी के कथित जनप्रतिनिधियों के दबाव मे नजरअंदाज कर रहे है, इस प्रकार के सबाल उठना लाजमी है। क्योंकि किसी एक समझदार ने लिखा है कि,,,किसी भ्रस्ट अधिकारी कर्मचारी के भ्रस्टाचार करने से देश या समाज का अहित नहीं होता, बल्कि अहित होता है तो सिर्फ एक जिम्मेदार और सजग अधिकारी के कुछ नहीं करने से,,,,,वहरहाल इस प्रकार भ्रस्टाचार कि कहानियो से दमोह का पंचायत बिभाग अपनी गोद मे बहुत कुछ समेटे बैठा है, बस कमी है तो सिर्फ एक जिम्मेदार और सजग अधिकारी के द्वारा मामले मे जाँच कर सम्बंधितो के खिलाफ तथ्यात्मक कार्यवाही करने कि,जो शायद एक सपना ही बना रहेगा। इस लिए आज हमें यह लिखना पड़ा कि,शायद इस भ्रस्टाचार मे लिप्त कथित अधिकारी और कर्मचारी समेत सत्ताधारी पार्टी के जनप्रतिनिधि यही कह रहे होंगे कि,,,,,,,
,,,मत चला ए ग़ालिब मेरे हालातो को देखकर अपनी कलम, क्योंकि तेरी कलम कि श्याही भलेही ख़त्म हो जाएगी, मगर मे तो अपनी आदतों से लाचार हूँ, जो न कभी सुधरा हूँ, और ना कभी सुधर सकता हूँ,,,,,
तो चलिए अपनी कलम को मजबूरी बस आज यही विराम देते है,,,कल फिर मिलेंगे इसी तरह की सच्चाई के साथ खबर का ब्लास्ट करते हुए , क्योंकि इंतजार कीजिए पिक्चर बाकी है,,,,,? नमस्कार
