दमोह – मध्यप्रदेश का दमोह जिला इन दिनों शासकीय व्यवस्था की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक का गवाह बनता जा रहा है। यहाँ फर्जी दस्तावेजों के सहारे सरकारी नौकरियाँ पाना अब कोई बड़ी बात नहीं रही। चाहे डॉक्टर की डिग्री हो या जाति प्रमाण पत्र, जालसाजों ने हर रास्ता अपना लिया है – और प्रशासन अब भी “जांच की बात” कर रहा है।
कलेक्ट्रेट के अंदर फर्जीवाड़ा,, अनजान बनी प्रशासन, या जानबूझकर चुप्पी,,,
दरअसल ताजा मामला दमोह कलेक्ट्रेट बिल्डिंग में कार्यरत एक कम्प्यूटर ऑपरेटर से जुड़ा है, जो कथित तौर पर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सहारे भू-राजस्व विभाग में नौकरी कर रहा है। शिकायतकर्ता अरविंद मुड़ा ने स्वयं अपने चचेरे भाई पर आरोप लगाया है कि वह ‘मुंडा’ आदिवासी जाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर आदिवासी आरक्षण का लाभ ले रहा है, जबकि असल में वह ‘मुड़ा’ जाति से है।
पूरा परिवार ही ‘सेट’! बहन सीएमओ, भाई फैक्ट्री में पदस्थ,,
मामला यहीं तक सीमित नहीं है। आरोपों के अनुसार उक्त युवक की बहन जबलपुर के पाटन क्षेत्र में फर्जी प्रमाण पत्रों के दम पर नगर परिषद की सीएमओ बनी हुई है, जबकि भाई खमरिया फैक्ट्री में कार्यरत है। एक ही परिवार के कई सदस्य शासकीय सेवाओं में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर तैनात हैं, और प्रशासन अब तक अनजान बना हुआ है।
जातियों की हेराफेरी का गोरखधंधा,, अब क्या करेंगी दमोह प्रशासन,,,,
एक अन्य आवेदन में दमोह के राजेश कुमार रजक ने कलेक्टर से शिकायत की कि कई लोग अपने वास्तविक जातिगत पहचान को छुपाकर अनुसूचित जाति/जनजाति का फर्जी प्रमाण पत्र बनाकर शासकीय योजनाओं और सेवाओं का लाभ ले रहे हैं। रजक समाज के लोग, जो कुछ जिलों में एससी माने जाते हैं, अन्य जिलों में ओबीसी में आते हैं – लेकिन कुछ लोग इस भ्रम का फायदा उठाकर आरक्षण का अनुचित लाभ उठा रहे हैं।
,,,प्रशासन की चुप्पी, कार्रवाई सिर्फ कागज़ों में,,,
इन सब शिकायतों के बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। कलेक्टर स्तर पर जांच की बात जरूर कही गई है, लेकिन अब तक न तो किसी की नियुक्ति रद्द हुई है, न ही किसी पर कानूनी कार्रवाई की गई है। इससे यह साफ़ जाहिर होता है कि या तो जिम्मेदार अधिकारी आंख मूंदे बैठे हैं, या फिर मिलीभगत की बू है।
,,जनता का सवाल: कब खत्म होगा फर्जीवाड़ा..?
दमोह की जनता पूछ रही है — कब तक फर्जी प्रमाण पत्रों पर गरीबों और असली पात्रों का हक मारा जाता रहेगा? कब प्रशासन इन ‘फर्जी अफसरों’ पर सख्त कार्रवाई करेगा? यह समय है, जब शासन को इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेकर व्यापक जांच बैठानी चाहिए और दोषियों को तत्काल बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।
